गुनाहों के अँधेरे की भी क्या बात थी
पर मसीहा के सामने क्या बिसात थी
मेरी ज़िंदगी तो थी वीरान वीरान सी
दिल में काले गम की अँधेरी रात थी
बस घेरे थे निराशाओं के बादल मुझे
यूँ हर तरफ बस दर्द की सौगात थी
मैंने ढूँढा ना उसको, वो ही खुद आया
ये उसकी रहमत और निराली बात थी
मैं अपनी ताकत से ढूंढ लूं क्या उसको
मुझ नाचीज की ये कहाँ से औकात थी
मसीहा मिले तो महसूस हुआ मुझे भी
जैसे हर ओर खुशियों की बरसात थी
मिट चुका था मेरा अकेलापन भी पूरा
अपनाने को विश्वासियों की जमात थी
उठते हैं हाथ उसकी इबादत में ही
वरना इन हाथों में तो खुराफात थी
बदलता है बस मसीहा का करिश्मा
वरना यूँ किसमें इतनी करामात थी
It’s very nice line.
Very good. May god bless you abundantly.
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Thanks a lot for your appreciation. Every blessing to you.
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